ऐ कृष्णा एहि गोकुले में रहुना
जउने सुख बा नन्द नगरी में
तउने सुखवा कहूं ना
ऐ कृष्णा एहि गोकुले में रहुना
रोज सबेरे उबटन मलके
इत्तर से नहवाईब
एक महीना के भीतर
करिया से गोर बनाइब
झूठ कहत न बानी तनिको
मौका ईगो देहु ना
ऐ कृष्णा एहि गोकुले में रहुना
नित नवीन मन भावन व्यंजन
परोसब कंचन थारी
स्वाद भूख बढ़ी जाई सुन
गोपी ग्वालन के वाणी
बार बार हम करब चिरौरी
औरि कुछ लेहु ना
ऐ कृष्णा एहि गोकुले में रहुना
निधिवन जी में नित आ आ के
तोह संग रास रचायब
यमुना जी में कनक नैया पे
झिझिरी खुब खेलायब
पवन देव से करब निहोरा
हउले हउले बहुना
ऐ कृष्णा एहि गोकुले में रहुना
हमरे निहोरा नंदनंदन से
माने या न माने
पर राधा रानी के नाते
गोपिन के आपन जाने
या गोकुले में रही जइयो या
संग अपने ले चालू ना
ऐ कृष्णा एहि गोकुले में रहुना
ऐ कृष्णा एहि गोकुले में रहुना
जउने सुख बा नन्द नगरी में
तउने सुखवा कहूं ना
ऐ कृष्णा एहि गोकुले में रहुना
=> मुकुल मकरंद =>रचित
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