राजा नहुष, स्वर्ग की प्रभुता, मद - इन्द्राणी से विवाह प्रस्ताव

वृत्रासुर का वध करने से इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा था . इस पाप से बचने के लिए इंद्र तपस्या करने जाने वाले थे . अब इन्द्रासन तो खाली रखा नहीं जा सकता अतः ऐसे योग्य राजा की खोज होने लगी जो इंद्र की अनुपस्थिति में कुछ दिन स्वर्ग की व्यवस्था देख सके.
धरती लोक पर नहुष उस समय बहुत प्रतापी राजा थे . नहुष के सामने सभी देवों ने स्वर्ग का कार्यभार सँभालने का प्रस्ताव रखा. नहुष ने इंद्र को यह कह कर माना कर दिया कि स्वर्ग के प्रभुता जनित मद से बचना मुश्किल है . पुनः देवतावों के बहुत विनती करने पर देवहित में रजा नहुष ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.

पुरंदर नामक इंद्र राजा नहुष को स्वर्ग का सिंहासन छोड़कर तपस्या को चले गए. नहुष राज काज देखने लगे . इन्द्र के सिंहासन के बगल में इन्द्राणी का सिंहासन भी था . इंद्र की अनुपस्थिति में इन्द्राणी का आसन खाली था . अस्थायी इंद्र बने नहुष ने मंत्रियों से इन्द्राणी को इंद्र की सिंहासन पर बैठने के लिए कहा . इसपर मंत्रियो ने कहा ये तभी संभव है जब आप इन्द्राणी ("शची") से विवाह कर लें और वो आपकी अर्धांगनी बने . नहुष ने शची के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा . इन्द्राणी इस प्रस्ताव से बहुत चिंतित हुई और वह इस सन्दर्भ में देवगुरु बृहस्पति  से परामर्श लेने पहुँच गयी .
गुरु बृहस्पति को समझते देर न लगी कि, नहुष के अन्दर  प्रभुता जनित अहंकार उत्पन्न हो गया है . इस अहंकार के निवारण से ज्यादा जरुरी था सती शची के सतीत्व के लिए यत्न करना .

देवगुरु ने इन्द्राणी को परामर्श दिया :-> अस्थायी इंद्र  नहुष से बोलो को वो अगर सप्तऋषियों से जुती हुई पालकी में आये तो मैं उनका वरण कर लुंगी . शची के तरफ से ऐसा सन्देश सुनकर नहुष ने शीघ्र ही सप्त ऋषियों को आपने सभा में बुलवा लिया तथा आदेश दिया की आपलोग मेरे पालकी को वहन कर इन्द्राणी तक ले चलें . राजा नहुष उस समय इंद्र थे और इंद्र राजा का बात नहीं मानना राज द्रोह होता सो ऋषियों ने इसे राजा का आदेश समझ स्वीकार कर लिया .

ऋषि कन्धों पर पालकी रखी गयी और नहुष इन्द्राणी की महल की ओर चल पड़े . इन्द्राणी के पास एक निश्चित समय तक पहुंचना था तभी नहुष का अभीष्ट सिद्ध हो पाता . लेकिन ऋषियों को शारीरिक श्रम करने की आदत नहीं थी अतः वो बार बार थक कर पालकी कंधे से उतारकर नीचे रख दे रहे थे .

नृप नहुष ऋषियों को बार बार बोलते "सर्प सर्प" ( 'तेज चलो तेज चलो ' ) . 

राजा के इस व्यवहार से ऋषि कुपित हो गए और उन्होंने राजा को शाप दिया . सर्प सर्प बोलता है जावो सर्प हो जाओ .  ऋषियों के शापवश नहुष विकराल अजगर बनकर धरती पर आ गिरे. महाभारत काल में इनका युधिष्ठिर के साथ प्रश्नोत्तर संवाद हुआ और इनका उद्धार हुआ .  

शिक्षा:-> अतः हमें धन सम्पदा और प्रभुता जनित मद ("अहंकार ") से बचना चाहिए .