नवरात्रि त्रिधा प्रकृति की आराधना का उत्सव - 26 सितम्बर 2022 से 4 अक्टूबर 2022

नवरात्रि काल, 26 सितम्बर 2022 से 4 अक्टूबर 2022 तक। 


सृष्टि त्रिधा प्रकृति है। सतोगुण रजोगुण और तमोगुण। सभी जीवधारी के शरीर में ये अलग अलग अनुपात में व्याप्त होते है। इन तीनों गुणों में जिस गुण की अधिकता पायी जाती है मनुष्य उसी प्रकृति का कहा जाता है। मनुष्यों के अलग अलग प्रकृति के आधार पर उनके आराध्य देव भी सतोगुणी रजोगुणी और तमोगुणी हो सकते हैं। भगवान विष्णु सतोगुणी स्वभाव के ब्रह्मा जी रजोगुणी स्वभाव के और भगवान शिव तमोगुणी देव कहे गए है. शिव की पूजा सतो गुणी और तमो गुणी दोनों रूप में की जाती है वहीं माँ दुर्गा की आराधना सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण तीनों प्रकृति के लोग करते हैं। 
नवरात्रि के ९ दिनों में पहले तीन दिन तमोगुणी प्रकृति की आराधना करते हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुणी और आखरी तीन दिन सतोगुणी प्रकृति की आराधना का महत्व है ।

माँ की आराधना, २६ सितम्बर २०२२ से ४ अक्टूबर २०२२ तक। 

दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती ये तीन रूप में माँ की आराधना करते है| ऐसा कहा जाता है कि देवी सभी जीवों में प्रकृति रूप में विद्यमान है 
"या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते" - "सभी जीव जंतुओं में चेतना के रूप में ही माँ / देवी तुम स्थित हो"
नवरात्रि माँ के अलग अलग रूपों को निहारने और उत्सव मानाने का त्यौहार है। जैसे कोई शिशु अपनी माँ के गर्भ में ९ महीने रहता हे, वैसे ही हम अपने आप में परा प्रकृति में रहकर - ध्यान में मग्न होने का इन ९ दिन का महत्व है। वहाँ से फिर बाहर निकलते है तो सृजनात्मकता का प्रस्सपुरण जीवन में आने लगता है।

कलस स्थापन का मुहूर्त 

इस वर्ष  2022 में शारदीय नवरात्री घटस्थापना शुभकाल => मुहूर्त २६  सितम्बर २०२२ को प्रातः  ०६  बजकर २१  मिनट से ०८ बजकर ०६ मिनट तक रहेगा| यदि कलश स्थापन की अभिजीत मुहूर्त को बात की जाय तो वो 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 46 मिनट तक रहेगा| 

प्रतिपदा के दिन किया जाने वाले पूजा 

प्रथमं शैलपुत्री च => नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री वृषभ (बैल) पर सवार रहती है। मां शैलपुत्री की पूजा में श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प अनिवार्य होता है। उनको सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं। मां शैलपुत्री की पूजा करते समय उनके चरणों में गाय का घी अर्पित करना भी शुभ माना जाता है। माँ शैल पुत्री के बालों के श्रृंगार के लिए चंदन लेप , त्रिफला तथा कँघी अर्पण किया जाता है। 

नवरात्रि का समापन 

नवरात्रि का समापन नवमी तिथि के दिन हवन के साथ होता है। जिस पक्ष में नवरात्रि ९ दिन की होती है उस वर्ष तो व्रती या जप  में रत व्यक्ति को ९ दिन उपवास और जाप के लिए मिल जाता है। लेकिन, जिस पक्ष में नवरात्रि ९ दिन  से कम की होती है उसमे ९ दिन का व्रत तो नहीं मिल पाता लेकिन ९ पाठ संभव है। इसी तरह ९ दिन में ९ माला जाप करने वाले भी अपने जाप को किसी दिन दोहरा कर ९ जाप पूरा कर सकते हैं। 

नवरात्रि का आखिरी दिन - विजयोत्सव
आखिरी दिन फिर विजयोत्सव मनाते हैं क्योंकि हम तीनो गुणों के परे त्रिगुणातीत अवस्था में आ जाते हैं। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षशी प्रवृति हैं उसका हनन करके विजय का उत्सव मनाते है। रोजमर्रा की जिंदगी में जो मन फँसा रहता हे उसमें से मन को हटा करके जीवन के जो उद्देश्य व आदर्श हैं उसको निखार ने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है। एक तरह से समझ लीजिये की हम अपनी बैटरी को रिचार्ज कर लेते है। हर एक व्यक्ति जीवनभर या साल भर में जो भी काम करते-करते थक जाते हे तो इससे मुक्त होने के लिए इन ९ दिनों में शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि और बुद्धि में शुद्धि आ जाए, सत्व शुद्धि हो जाए ==>