अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा

एक बार की बात है कोशी नदी के किनारे एक साधु अपने शिष्य के साथ रहता था।
 दोनों का अधिकांश समय भगवान के भजन गाने में ही बीतता था।

एक बार दोनों देशाटन पर गए।



घूमते-घूमते वह किसी अनजान देश में पहुंच गया। वहां जाकर दोनों ने एक बगीचे में अपना डेरा बनाया।. गुरु जी ने शिष्य गंगाधर को एक टका दिया और कहा, बेटा, बाजार जाओ और कुछ सब्जियां ले आओ।

 शिष्य गंगाधर जब बाजार पहुंचे तो इस बाजार को देखकर हैरान रह गए।उस बाजार में सारा सामान टके सेर की दर से बिक रहा था।
क्या सब्जी, क्या पनीर, क्या मिठाई सब एक टके में एक सेर के भाव से बिक रहा था।





शिष्य ने सोचा कि हम रोज सब्जियां खाते हैं, आज हम मिठाई ही खाते हैं। इसलिए उन्होंने टेक सेर के रेट से ही मिठाई खरीदी। मिठाई लेकर वह खुशी-खुशी अपनी झोंपड़ी में पहुंच गया। उन्होंने बाजार का पूरा हाल गुरु जी को सुनाया। गुरु जी ध्यान कर रहे थे और कुछ सोचकर बोले। हमें इस शहर और देश को जल्द से जल्द छोड़ देना चाहिए। शिष्य गंगाधर यह एक अँधेरी नगरी है और यहाँ के राजा महा चौपट हैं। यहां रहने से हमारी जान को खतरा हो सकता है और हमें न्याय नहीं मिलेगा।

लेकिन गुरु जी का यह सुझाव शिष्य को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। क्योंकि उसे यहां पर महंगे-महंगे खाने-पीने का सामान, मिठाई आदि सब सस्ते में मिल रहा था। वह कुछ और दिन यहीं रहना चाहता था।

शिष्य के व्यवहार पर गुरु जी हंस पड़े। गुरुजी ने कहा ठीक है बेटा, तुम यहाँ कुछ दिन और रुको और मिठाई आदि खाओ. हाँ कोई मुसीबत आए तो मुझे अवश्य याद करना। यह कहकर गुरु जी वहां से चले गए।

गंगाधर रोज सुबह भिक्षा के लिए बाहर जाता था और भिक्षा में मिलने वाले एक-दो रुपये से स्वादिष्ट मिठाई खरीदता था। इस तरह कई महीने बीत गए। स्वादिष्ट मिठाइयाँ आदि खाकर वह बहुत मोटा और बलवान हो गया।

विधवा कलावती की न्याय की गुहार


एक दिन गरीब विधवा कलावती की बकरी पंडित दीनदयाल के खेत की फसल चर रही थी। दीनदयाल ने बकरी को डंडे से मारा; बकरी मर गई। कलावती ने राजा के सामने विनती की। राजा ने आदेश दिया, दीनदयाल को आजीवन कारावास के बदले फांसी पर लटका दो।

जल्लाद ने दीनदयाल को फंदे से लटकाना शुरू कर दिया। दीनदयाल बहुत दुबले-पतले थे, इसलिए उनके गले में कोई फंदा सही आ नहीं रहा था। जल्लाद ने अपनी परेशानी राजा को बताई। राजा ने कहा, उस मोटे आदमी को ढूंढो जिसके गले में यह फंदा ठीक बैठता हो।

अपराधी की तलाश


जल्लाद कोतवाल के साथ ऐसे व्यक्ति की तलाश में निकल पड़ा। तलाश करते-करते कोतवाल गंगाधर की कुटिया पर पहुंच गए। संयोग से फांसी का फंदा गंगाधर के गले में फिट हो गया। अब कोतवाल उसे राजा के दरबार में ले आए।


फांसी से पहले राजा ने गंगाधर से उसकी अंतिम इच्छा पूछी। गंगाधर ने अपने गुरु से मिलने की इच्छा व्यक्त की। गंगाधर के गुरु बुलाए गए। गुरु अपने शिष्य के पास अपनी पुस्तक लेकर आए। पुस्तक में से कुछ देखकर गुरु ने बताया। आज का समय बहुत ही शुभ है। जो इस दिन मरता है वह स्वर्ग का राजा होगा और स्वर्ग का सुख भोगेगा।

मेरे प्रिय शिष्य गंगाधर, मैंने अभी तक गुरु दक्षिणा के रूप में आपसे कुछ भी नहीं लिया है। आज मुझे आपसे यह गुरु दक्षिणा चाहिए। तुम मुझे स्वर्ग का राजा बनने का मौका दो और मुझे फांसी के तख्ते पर जाने दो। 
गुरु से यह सुनकर शिष्य ने कहा, गुरुजी, आप दक्षिणा में कुछ और ले लो, लेकिन मैं स्वर्ग के सुख से वंचित नहीं होना चाहता।


गुरु और शिष्य के बीच तर्क सुनकर राजा ने उन दोनों को अपने पास बुलाया और तर्क का कारण पूछा।

जब राजा ने गुरु के मुख से सुना कि आज मरने वाले को स्वर्ग का राज्य मिलेगा, तो वह चौंक गया।

राजा सोचने लगा कि जल्लाद मेरा, फांसी का फंदा मेरा और स्वर्ग का राजा बने और कोई। ये नहीं होगा यह कह कर वह स्वयं फाँसी पर चढ़ गया। 

अब अंधेर नगर के चौपट राजा का अंत हमेशा के लिए हो गया था।

गुरु जी ने शिष्य से कहा=>


वत्स गंगाधर अब यह नगरी अंधेर नगरी नहीं रही। अब यहां आपको टके सेर में भाजी और टके सेर में खाजा मिठाई नहीं मिलेगी। सभी वस्तु का उचित मूल्यांकन होगा। आप इस राज्य के राज्यभार अपने ऊपर ले लें। मैं एक मंत्री के रूप में आपका उचित मार्गदर्शन करूंगा।

इस कहानी से क्या शिक्षा मिली ?

शिक्षा 
नीर क्षीर का विवेक रखने वाले हीं सही फैसला सुना सकते हैं। 
जहाँ टका सेर में भाजी और टका सेर में खाजा बिकता हैं वहाँ का राजा निश्चय हीं मतिभ्रम है  अन्यायी है।