यह सवाल गढे मुर्दे उखाड़ने लिये नहीं, बल्कि फिर ऐसी साज़िशे कामयाब ना हों इसलिये उठाना जरूरी
समझता हूँ आखिर देश के बंटवारे के लिये कौन कौन दोषी थे और कौन नहीं, इस विषय में चर्चा करने के लिये जाहिर हैं बड़े बड़े नाम
लेने पडेंगे,
जो लोग इस दुनियाँ से जा चुके
हैं फिर भी इतिहास से सबक लेना ही पड़ता है, इसलिये
इतिहास का पुनरीक्षण करते हैं और नज़र डालते हैं उन नामचीन लोगों पर जिनका नाम
आज़ादी की लड़ाई से जुड़ा हुआ था.यह सच है कि आम जनता विभाजन के पक्ष में नहीं थी
और अधिकतर लोगों को ऐसा अंदाज़ा भी नहीं था कि देश के अहित में यह फैसला उनके नेता
ले लेंगे. क्योंकि विभाजन से अगर किसी को फायदा हुआ तो वो थे अमरीका और रूस. एक और
बात काबिले गौर है कि आज़ादी के समय पूरे संसार में ब्रिटिश राज्य का पतन होने लगा
था और ब्रिटेन अमरीका का पिछलग्गू बनने की कगार पे आ चुका था. ऐसे में अमरीका का
दबाव होना बहुत स्वभाविक था और अमरीका की मौकापरस्ती दुनियाँ को जाहिर हैं.
ब्रिटिश राज : यह तो जग जाहिर है कि अंग्रेज़ों की
यह चाल थी और इसी लिये उन्होंने आज़ादी के लिये बंटवारे की शर्त रखी. लेकिन हमारे
नुमाइंदे जो अंग्रेजो को बिक चुके थे इस बात को स्वीकार क्यों करने लगे. आज़ादी के
लिये कुछ लोगों ने दलालों का काम किया, दलाल
बेचने और खरीदने वाले दोनों से कमीशन खाता है, इन दलालों ने अंग्रेज़ों की हाँ में हाँ मिलकर सत्ता सुख भी लिया
और आज़ादी का श्रेय लेकर आज़ाद भारत में अपनी सरकार में सीट भी पक्की की. इन लोगों
के नाम पोस्ट की अगली कड़ी में आने ही वाला है. यह तो सच है बंटवारे की चाल
ब्रिटिश राज की थी लेकिन यह चाल कभी कामयाब नहीं होती अगर घर के भेदी समझौते पर
हस्ताक्षर ना करते, आज़ादी
मिलना तो तय ही था, जल्दबाजी
में यह फैसला लेने के कारण आज दक्षिण एशिया में जो अशान्ति, आतंकवाद का वातावरण है, उससे बचा
जा सकता था और जो पैसा भारत और पाकिस्तान रक्षा बज़ट में खर्च करके अमरीका और रूस
को मालामाल करते रहे उससे इस देश की खुशहाली में चार चांद लगते.
कांग्रेस : जैसा कि सब जानते हैं, कांग्रेस का जन्म अंग्रेज़ों के साथ सत्ता में भागीदारी के
लिये एक ब्रिटिश ने ही किया था. कांग्रेस ने अंग्रेज़ों के साथ सत्ता सुख भी भोगा, उस समय के अभिजात्य और महत्वपूर्ण लोगों के नाम पर, जिनका जनता पर प्रभाव था अंग्रेज़ों के राज्य में कांग्रेस के नुमाईंदों को वो सारे
सुख साधन उपलब्ध थे जो अंग्रेज़ अफ़सरों को थे, उन सबका रहन सहन भी अंग्रेज़ों जैसा ही था और कांग्रेस ने ही
बंटवारे के मसौदे पर हस्ताक्षर किये गये.
इसका मुख्य विवरण इस प्रकार है इससे साफ
जाहिर होता है कि मसौदे पर दस्तखत करने में प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस ( नेहरू) और
मुस्लिम लीग ( जिन्ना ) थे.