राजू नाम का लड़का और धनी सेठ

राजू नाम लड़का एक धनी सेठ के यह काम करता था। लड़का बहुत मातृ भक्त था। वह अपने माँ से पूछ कर ही सब काम करता था। वह किसी बात के निर्णय के लिए अपने बुद्धि का प्रयोग नहीं करता था। अर्थात  उसमे प्रतिउत्पन्न मतित्व की कमी थी।

एक बार सेठ ने लड़के को मजदूरी में पैसे दिए। राजू पैसे हाथ में लिए सिक्कों को उछालते हुए घर पहुँचा। उछालने से बहुत से सिक्के रास्त में खो गए।  बच्चे खुचे सिक्कों के साथ घर पहुँचा तो माँ ने राजू से उदासी का कारन पूछा।  राजू ने बताया की सेठ ने मुझे दस सिक्के दिए थे लेकिन कुछ सिक्के रास्ते में गिर गए। माँ ने उसे समझते हुए कहा कोई बात नहीं बेटा अब सेठ कोई भी चीज दे तो उसे जेब में रख कर लाना।
कुछ दिन बाद सेठ की गाय ने बछड़े को जन्म दिया। सेठ ने राजू को कहा की आज तुम गाय का दूध लेते जाना। राजू ने माँ के कहे अनुसार दूध जेब में रख लिया। जेब में दूध रखने से सारा दूध निचे गिर गया। उदास होकर राजू जब घर पहुँचा तो माँ ने उसे समझते हुए कहा कोई बात नहीं बेटा अब से तुम जो कोई सामान लाना बाल्टी में लाना। मैं तुम्हे ये बाल्टी देती हूँ इसे अपने साथ ले जाना सेठ जब भी कोई सामान दे इसमें रख लेना।

राजू के सेठ के यहाँ मुर्गा बहुत हो गए थे।  सेठ ने सोचा क्यों न राजू को एक मुर्गा दे दूँ। सेठ ने राजू से कहा राजू शाम को जाते समय एक मुर्गा लेते जाना। राजू मुर्गा पाकर बहुत खुश  हुआ वह मुर्गे को अपने बाल्टी में रख कर अपने घर चला। कुछ दूर जाने के बाद मुर्गा बाल्टी में से उड़कर पेड़ पर बैठ गया। राजू चाहकर भी मुर्गे को नहीं पकड़ सका। उदास राजू खाली हाथ घर लौट गया।

इस कहानी का सारांश यह है की हमें समयानुसार अपने दिमाग से निर्णय लेना चाहिए।        

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