आप सुधरे तो जग सुधरा - राजा ग्वालों और दूध की कहानी

एक राजा था।  वह बहुत न्यायप्रिय था। एक बार राजा के मन में यह जानने की इच्छा  हुई की उसके नगर में कुल कितने ग्वाले हैं और यज्ञादि के लिए जरुरत पड़ने पर अधिक से अधिक कितना दूध और दधि घृतादि उपलब्ध हो सकते हैं।
यह जानने के लिए राजा ने अपने महल के बगीचे में एक बहुत बड़ा कड़ाह रखवा दिया। नगर में रहने वाले ग्वालों को आदेश दिया गया की सभी ग्वाले रात में अपने अपने घर से दूध का भरा बर्तन लाकर इस कड़ाह में उड़ेलेंगे। बगीचे में बिना पहरेदार के मुक्त रूप से ग्वाले जाकर अपने दूध कड़ाह में डाल सकते थे।

सभी ग्वालों को उपस्थिति निश्चित करने के लिए बगीचे के बाहर गेट पर रौशनी में एक रजिस्टर रखा था। सभी ग्वालों को अपनी उपस्थिति इसी पुस्तिका में दर्ज करनी थी। कड़ाह ढंका हुआ था और कड़ाह में दूध डालने के लिए एक नाली बानी हुई थी। कड़ाह में कितना दूध है भरा है या खाली यह किसी ग्वाले को नहीं दीखता था।   रात होते ही सभी ग्वाले अपने अपने दूध के बर्तन लेकर राजा के बगीचे की ओर चल पड़े। एक ग्वाले ने अपने मन में विचार किया राजा ने सभी से दूध डालने को कहा है मैं अगर अपने हिस्से के दूध  के बदले पानी ही डाल दूँ तो कौन देखने जाता है। उस ग्वाले ने अपने हिस्से का पानी ही डाल दिया।

सुबह राजा की उपस्थिति में कड़ाह खोला गया। "राजा के साथ-साथ सभी नग रवासी  यह देख कर हैरान थे - कड़ाह दूध से नहीं पानी से भरा था"

असल में उस नगर के सभी ग्वालों ने यही बात सोच लिया की सभी ग्वाले तो दूध डालेंगे ही मैं क्यों न पानी डालकर अपना दूध बचालूं। नतीजा यह हुआ की कड़ाह दूध से भरने के बजाय पानी से भर गया।

हमारे व्यावहारिक जीवन में भी जब सुधार की बात होती है तो लोग अक्सर यह कहते सुने गए हैं की एक आदमी के सुधरने से क्या होगा। तो मित्रों यह कहानी बताती है की एक आदमी के न सुधरने से क्या क्या मुसीबत आ सकती है समाज को   


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