किताबी शिक्षा बनाम व्यवहारिक शिक्षा
एक गांव में चार मित्र रहते थे। यह गांव बहुत दिनों से सूखा और अकाल से पीड़ित था। उनमे से तीन बहुत ज्यादा शिक्षित थे और अपने चौथे मित्र शिवानंद को आलसी अव्यवहारिक और मुर्ख समझते थे. शिवानंद को शैक्षणिक ज्ञान कम था लेकिन व्यावहारिक ज्ञान में वो तीनो मित्रो से बढ़ कर था। अपनी शैक्षणिक योग्यता पर शिवानंद के तीनो मित्र इतराते रहते थे।
चारो उच्च शिक्षा के लिए बिद्वानो के लिए मसहूर शिक्षा का केंद्र मनसा जाने का निश्चय किये। रास्ते में एक जंगल पड़ता था। रास्ता जंगल के बीच से होकर जाता था। जंगल में उन्होंने एक शेर की हड्डियां देखी। उनमे से एक मित्र सत्यानंद ने शेर के बिखरे हुए हड्डियों को चुन कर इकठ्ठा किये और शेर के हड्डी से शेर का ढांचा अपने मंत्र विद्या से तैयार कर दिया। दूसरे मित्र ने ऐसा देखकर सेर के हड्डियों के ऊपर मांस और खाल चढ़ाने का निश्चय किया और अपने मंत्र विद्या से ऐसा करने में सफल रहा। अब तीसरे मित्र विद्यानंद ने अपनी प्रतिभा दिखने की बात सोची। वह अपने मन्त्र शक्ति से शेर में प्राण डालने को उद्यत हुआ।
शिवानंद यह देखकर बहुत घबरा गया उसने उन तीनो को ऐसा करने से रोक। उसने शेर के जीवित होने पर होने वाले गंभीर परिणाम से सभी मित्रों को अवगत करना चाहा। सभी मित्र उसे हेय दृष्टि से देखते थे अतः शिवानंद के बातों का सभी मित्रों ने अवहेलना कर दिया। शिवानंद ने देखा की बहुत समझने पर भी ये हठी मुर्ख अव्यवहारिक मित्र नहीं मानेंगे तो उसने विद्यानंद से कहा की रुको तुम इस सेर के अंदर अपने मंत्र शक्ति से प्राण दाल दो लेकिन पहले मुझे पेड़ पर चढ़ जाने दो। शिवांनंद के पेड़ पर चढ़ते ही विद्यानंद ने सेर को जीवित कर दिया .
सेर जो भूख के मारे मार पड़ा था अपने सामने खड़े तीन शिकारों को जल्द ही मार कर खा गया.
अतः कहा गया है की "एक मन बिद्या के लिए नौ मन बुद्धि चाहिए"
शैक्षणिक ज्ञान से ज्यादा महत्व व्यावहारिक ज्ञान का है।
चारो उच्च शिक्षा के लिए बिद्वानो के लिए मसहूर शिक्षा का केंद्र मनसा जाने का निश्चय किये। रास्ते में एक जंगल पड़ता था। रास्ता जंगल के बीच से होकर जाता था। जंगल में उन्होंने एक शेर की हड्डियां देखी। उनमे से एक मित्र सत्यानंद ने शेर के बिखरे हुए हड्डियों को चुन कर इकठ्ठा किये और शेर के हड्डी से शेर का ढांचा अपने मंत्र विद्या से तैयार कर दिया। दूसरे मित्र ने ऐसा देखकर सेर के हड्डियों के ऊपर मांस और खाल चढ़ाने का निश्चय किया और अपने मंत्र विद्या से ऐसा करने में सफल रहा। अब तीसरे मित्र विद्यानंद ने अपनी प्रतिभा दिखने की बात सोची। वह अपने मन्त्र शक्ति से शेर में प्राण डालने को उद्यत हुआ।
शिवानंद यह देखकर बहुत घबरा गया उसने उन तीनो को ऐसा करने से रोक। उसने शेर के जीवित होने पर होने वाले गंभीर परिणाम से सभी मित्रों को अवगत करना चाहा। सभी मित्र उसे हेय दृष्टि से देखते थे अतः शिवानंद के बातों का सभी मित्रों ने अवहेलना कर दिया। शिवानंद ने देखा की बहुत समझने पर भी ये हठी मुर्ख अव्यवहारिक मित्र नहीं मानेंगे तो उसने विद्यानंद से कहा की रुको तुम इस सेर के अंदर अपने मंत्र शक्ति से प्राण दाल दो लेकिन पहले मुझे पेड़ पर चढ़ जाने दो। शिवांनंद के पेड़ पर चढ़ते ही विद्यानंद ने सेर को जीवित कर दिया .
सेर जो भूख के मारे मार पड़ा था अपने सामने खड़े तीन शिकारों को जल्द ही मार कर खा गया.
अतः कहा गया है की "एक मन बिद्या के लिए नौ मन बुद्धि चाहिए"
शैक्षणिक ज्ञान से ज्यादा महत्व व्यावहारिक ज्ञान का है।
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