ईमानदार लकड़हारा

ईमानदारी सर्वोत्तम निति- Honesty The Best Policy

ईमानदारी सर्वोत्तम निति है। ईमानदारी से जीवन यापन करने वाले व्यक्ति को शुरू निराश होना पड़ सकता है।  लेकिन अंततः उसकी जीत होती है।
एक ईमानदार लकड़हारा था जंगल से लकड़ियां काट कर लाता था और शहर में बेचता था।  बहुत मुश्किल से अपने परिवार का भरण पोषण कर पता था। एक दिन वो जंगल में लकड़ी काटने गया। नदी किनारे एक पेड़ पर चढ़ कर सुखी लकड़िया काटने लगा। वो मन ही मन अपने दरिद्रता के निवारण के लिए भगवान्  से  विनती कर रहा था और लकड़ी काट रहा था। इसी क्रम में उसका ध्यान भगवान् के सुन्दर रूप के कल्पना में खो गया और हाथ से कुल्हाड़ी गिर गयी। कुल्हाड़ी जैसे ही हाथ से छूटी सीधे नदी में जा गिरी। लकड़हारा बहुत निराश हुआ जमीन पर गिरी होती हो झाड़ियों में ढुढता मिलने की उम्मीद थी। लेकिन नदी  के गहरे जल  से अपनी कुल्हाड़ी वो कैसे प्राप्त कर सकता।



पेड़ से निचे उतर कर नदी की विनती करने लगा।  उसकी विनती से जल देवी प्रकट हुई और उस के दुःख कर कारन पूछा। लकड़हारा देवी से अपने कुल्हाड़ी की विरह की व्यथा सुना दिया। जल देवी जल में डुबकी लगायी और एक चांदी की कुल्हाड़ी लेकर जल से बहार निकली। लकड़हारे को दिखते हुए बोली! ये है तुम्हारी कुल्हाड़ी।   लकड़हारे ने ईमानदारी से कहा की नहीं ये मेरी कल्हणी नहीं है। अब जल देवी फिर अंतर्ध्यान हो गयी। इस बार जल में से सोने की कुल्हाड़ी लेकर बहार आईं। लकड़हारे को सोने की कुल्हाड़ी दिखते हुए बोली निश्चय ही ये तुम्हारी कुल्हाड़ी होगी। लकड़हारे ने ईमानदारी का परिचय दिया और कहा कि हे देवी ! ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।  मेरी कुल्हाड़ी लोहे की थी।  देवी उसके ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुई। लकड़हारे को लोहे की कुल्हाड़ी के साथ- साथ दो कुल्हाड़ी("एक सोने की और एक चांदी की") ईमानदारी के पुरस्कार स्वरुप प्रदान की।

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