बृद्ध ब्याघ्र की कथा - Old Tiger's Tale
एक जंगल में एक बुढा बाघ रहता था। बृद्धा अवस्था के कारण उसके नख और दांत कमजोर पड़ गए थे, अतः वो शिकार नहीं कर पता था। एक दिन उसे किसी तालाब के किनारे स्वर्ण कंगन ("सोने का कंगन") मिला। वह तालाब दलदल वाला तालाब था उसमे जंगली जानवर सावधानी से किनारे पर जाकर अपनी प्यास बुझ लेते थे तालाब के अंदर दलदल के कारण कोई पैर नहीं रखता था।
शिकार कर अपनी उदर पूर्ति करने में असमर्थ बृद्ध ब्याघ्र ने सोचा की क्यों न मैं इस कंगन के लालच में अपने शिकार को फसांउं इससे मुझे शिकार को मारने में आसानी हो जाएगी।
अब बाघ सरोवर के किनारे बैठ कर किसी पथिक को देख कर जोर जोर से मनुष्य की बोली में आवाज़ लगता। कंगन ले लो ! कंगन ले लो ! ये कंगन मैं दान कर रहा हूँ कंगन ले लो।
शिकार कर अपनी उदर पूर्ति करने में असमर्थ बृद्ध ब्याघ्र ने सोचा की क्यों न मैं इस कंगन के लालच में अपने शिकार को फसांउं इससे मुझे शिकार को मारने में आसानी हो जाएगी।
अब बाघ सरोवर के किनारे बैठ कर किसी पथिक को देख कर जोर जोर से मनुष्य की बोली में आवाज़ लगता। कंगन ले लो ! कंगन ले लो ! ये कंगन मैं दान कर रहा हूँ कंगन ले लो।
बाघ रोज ऐसा ही प्रयास करता रहा लेकिन जंगल के रास्ते आने जाने वाले लोग उसकी बात को अनसुनी कर देते और सावधान होकर चले जाते।
एक दिन दानवीर बाघ की आवाज़ किसी लालची पथिक के कान में पड़ी, लालच के वशीभूत होकर वो कुछ पल के लिए मार्ग में रुक गया, फिर बाघ से दान कैसे सम्भव ऐसा सोच अपने को सम्भाल कर चलने लगा। बाघ ने उसे फिर रोका पथिक ने प्रत्युत्तर में "बाघ आदमी को खाता है ऐसा कहा" और जाने लगा।
अब बाघ ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा की अनेक गौ और मनुष्यों के वध करने से मेरे पुत्र और दारा ("स्त्री") दोनों मर गए। मैं बहुत दुखी था तब मुझे किसी धार्मिक व्यक्ति ने कहा की आप दान धर्म का आचरण करे। अतः उन्ही के कहने पर मैं दानस्वरूप ये कंगन तुम्हे दे रहा हूँ।
संदर्भ संस्कृतोक्ति ->
"अनेक गो मनुषाणाम भक्षणात मम पुत्रः मृताः दाराश्च। ततः केनचित धर्मिकेन अहमादिष्टः दान धर्मदिकम चरतु भवान"
बाघ ने फिर कहा मैं अपने सफाई में कुछ भी कहूंगा, मुझे दान कर धर्म पुण्य अर्जित करना है। लेकिन तुमे विश्वास नहीं होगा।
बाघ मनुष्य को खाता है ये लोकोक्ति और इस लोकभ्रन्ति का निवारण करना दुष्कर कार्य है।
संदर्भ संस्कृतोक्ति ->
" व्याघ्रः मानुषं खादति इति लोकोपवादह दुर्निवार:"
बाघ ने कई कहानियों के माध्यम से पथिक ("उस रही") को दान लेने के लिए विवश कर दिया।
जब राही दान लेने को उद्यत हुआ तो बाघ ने कहा कि, सरोवर में स्नान कर पवित्र होकर आवो और ये कंगन ग्रहण करो ताकि मुझे पुण्य लाभ हो।
पथिक बाघ के कहे अनुसार सरोवर में स्नान के लिए जल्दी में कूद पड़ा और घोर दलदल में फस गया। वो दलदल से बाहर आने का जितना प्रयास करता उतनी ही गहरी दलदल में और फसता जाता। उसने कातर नजर से बाघ की ओर देखा।
बाघ ने उसकी ओर देखते हुए ब्यंग से कहा गहरे दलदल में फस गए हो मैं अभी तुम्हे इस दलदल से निकलता हूँ। यह कहते हुए सावधानी से दलदल से बचते हुए बाघ पथिक के पास गया और उसे मार कर खा गया।
इस तरह एक लालची पथिक के कारण बाघ अपनी योजना में सफल हुआ।
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