देवदार वृक्ष की व्यथा

देवदार वृक्ष की व्यथा कथा 

एक जंगल में देवदार का एक वृक्ष था। उसके नुकीले कोणधारी पते उसे हीन भवन से ग्रसित किये रहते थे। उसको ये पत्ते कभी रास नहीं आते थे।
देवदार वृक्ष की व्यथा


इससे परेशान होकर उसने जंगल की देवी की प्रार्थना की। जंगल की देवी ने उसकी प्रार्थना सुन ली और उससे वर मांगने को कहा।  नुकीले पत्तों से परेशान वृक्ष ने स्वर्ण से सुन्दर पत्ते की कामना की।  वन देवी ने एवमस्तु कहा और देखते देखते वृक्ष के सारे पत्ते विल्कुल सोने की तरह सुनहरे रंग  के हो  गए। देवदार तरु अब बहुत खुश था लेकिन, उसकी खुशी ज्यादा दिन नहीं रही।  

एक दिन जंगल से एक डाँकू गुजर रहा था उसने जब देखा की इस बृक्ष के सारे पत्ते सोने के है , लालचवश वह पेड़ पर चढ़ कर सारे पत्ते तोड़ने लगा। देखते देखते दारु वृक्ष पत्रविहिन हो गया।
 
उसने फिर जंगल की देवी की स्तुति की, देवी प्रकट होकर वर मांगने को कही इस बार वो अपने लिए शीशे की तरह चमकते हुए पत्तों की कामना की।  वन देवी ने उसके सारे पत्ते कांच के हो जाने के वरदान दिए।

अब देवदार वृक्ष फिर से प्रसन्न था उसके सारे पत्ते हिरे के तरह चमक रहे थे और उसके आस पास अत्यधिक प्रकाश रहता था।एक बार जोर से आंधी आई और उसके सारे पत्ते तेज आंधी में हिल डुल कर चकनाचूर हो गए।

वृक्ष ने फिर से प्रलाप करना सुरु किया और रुदन करते हुए वन देवी को याद किया। वन देवी ने इस बार सुन्दर कोमल पत्ते का वरदान दिया।  वरदान पाकर वृक्ष के सारे पत्ते हरे भरे हो गए और जंगल के जानवरों को लुभाने लगे। देखते देखते जंगल की भेड़ बकरिया पेड़ पर टूट पड़ी और वो फिर से पर विहिन हो गया।
 
इस बार वह बहुत दुःखी और लाचार था।  उसने वन देवी से फिर प्रार्थना कि, और अपने पुराने कटीले कोणधारी पत्तों की याचना स्वरुप वरदान माँगा। वन देवी ने उसे फिर से एवमस्तु कहा  और वृक्ष पर सुन्दर पत्ते लहलहाने लगे। इसबार वो सबसे ज्यादा खुस था। उसे अपनी गलती का अहसास हो चूका था।

कहानी का सारांश ->
हमें जो भी चीज़ मिला है उसी में खुश रहना चाहिए, शायद विधाता ने इसे हमारी जरुरत समझी होगी।  

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